एक और अटलांटिस #सबकुछ बदल गया
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बहुत पुरानी कहानी है।पृथ्वी का एक छोर।वहां एक उन्नत सभ्यता विकसित हो चुकी थी।वहां एक सामान्य जीवन अपनी गति से चल रहा था।हाँ बस विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की थी तो किसी को भी नहीं पता नहीं रहता था कि कब बारिश होगी कब अकाल पड़ेगा..कब आंधी चलेगी।
लोग बाग अपनी दिनचर्या जी रहे थे।किसान खेतों में ,दुकानदार अपनी अपनी रोजगार में..।
आसमान साफ था।अचानक अंतरिक्ष में हलचल होने लगी।
वातावरण भयानक गर्जना से गुंजायमान हो गया।जो जहाँ था वहीं रूक गया।
""ऊपर आसमान तो एकदम साफ है फिर मेघों ने गर्जना कैसे की।""
तभी आग का एक बड़़ा सा गोला बड़ी तेजी से पृथ्वी की ओर आता दिखा।
अरे बाप रे...!!,यह परमपिता का दंड है जो हमारी तरफ आ रहा है..!!भागो..भागो..!!!!""
जो जिधर सका उधर ही दौड़ पड़ा..गिरते पड़ते..।बच्चे,बूढ़े महिलाएं..सभी..!!
कुछ बुजुर्ग एक साथ सभाएमान होकर कहने लगे
"दयालु परमपिता हमपर क्रोधित हो गए हैं।चलो हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं और उनके क्रोध को दूर करने की कोशिश करते हैं।
उस सभागार में चंद लोग थे..सबके हाथ जुड़े हुए थे..हाथ पैर कांप रहे थे..आंखों से आँसूओं का सैलाब बह रहा था।
दूसरे कुछ लोग भाग रहे थे.. बस भाग रहे थे। ऐसा लगता था कि ये सबलोग मृत्यु को परास्त कर देंगे ।कोई कुछ नहीं कर सका।ऊपर से जलती आग का गोला एक बहुत ही बड़े स्थान पर गिर गया।उस आग ने सबकुछ भस्मीभूत कर दिया।
कुछ समय तक वहां स्थित सभी चल अचल..जीव अजीव सभी उस आसमानी आग में जलकर भस्म हो गए।
अब कोई नहीं कह सकता था कि वहाँ कभी इतनी उन्नत सभ्यता भी विकसित थी।
जलती अग्नि धीरे धीरे बुझ गई..।पर अबोध निश्छल लोगों के आँसुओं को धरा सहन न कर पाई..उस विशाल उलकापिंड के एकाएक गिरने से धरती एकबारगी से डोल गई और धरती का टाइटैनिक प्लेट अपनी जगह से हिल गया।इससे समुद्र के पानी में हलचल मच गई और बेसमय ज्वार भाटा उठ गया।
समुद्र अपनी सतह से करोड़ों फीट ऊपर उठने बैठने लगा।
बहुत ही भयानक मंजर था।समुद्र की दावानल क्रोधाग्नि लग रहा था कि समुची पृथ्वी को खा जाएगी।और ऐसा हुआ भी।उस अज्ञात द्वीप की मार पृथ्वी के दूसरे छोर पर पड़ी।वहां भी एक विकसित सभ्यता पूर्णव्याप्त थी ।विनाशकारी सुनामी ने अपना विकराल मुँह फाड़कर पूरी सभ्यता को लील लिया था।
प्रलयकारी सुनामी के कारण एक और हँसती खेलती सभ्यता का विनाश हो गया।समुद्र एक बहुत बड़ी विशालकाय सभ्यता को खुद में समेट लिया था।
उन दिनों पृथ्वी की सघन आबादी भी नहीं थी न ही पृथ्वी देश महादेशों में बंटी थी ।
इतनी बड़ी बड़ी दोनों किनारों में आई आफत ने पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण को बिगाड़ दिया था । पृथ्वी के दोनों छोर के तबाह होने के कारण मध्यक्षेत्र में आंतरिक हलचल मच गई ।
इतना भयानक जलजला ज्वालामुखी ने मचाया कि पृथ्वी से ऊपरी वायुमंडल तक धुंआ धुँआ हो गया और जहरीली गैसों फैल गयीं।
अब जो भी जीव थे बड़े छोटे या सूक्ष्म सब तहस नहस हो गए।
अब करीब करीब पूरी पृथ्वी की बदनसीबी कुदरत ने लिख दिया था ।अब पृथ्वी पुनः जीवनरहित हो गई थी।
जल का स्तर बढ़ने लगा था। बहुत ही गर्म उलकापिंड गिरने के कारण पृथ्वी का तापमान एक नहीं था कहीं पर ठंड इतनी थी कि पानी भी पत्थर बन जाए..कहीं गर्मी से जमीन दरकने लगती थी..कहीं..पर अतिवृष्टि होती थी तो कहीं रेत के दलदल भरे पड़े थे।
फिर से एक बार पृथ्वी निर्जन हो गई थी।पूरी तरह जलमग्न..।
जहरीली हवाएँ फैलने के कारण बीच बीच में पृथ्वी पर एसिड की बारिश भी होती थी।
हाँ सूर्य और जल के उष्माओं के संयोजन से और लहरों के टकराने के कारण कुछ जलचर जीव उत्पन्न हो रहे थे..पर एकदम अलग प्रकार के....शायद नई सदी का प्रारंभ होने जा रहा था ।
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स्वरचित..।सीमा...❣️❣️
Chetna swrnkar
11-Oct-2022 07:20 AM
Very nice
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Gunjan Kamal
07-Aug-2022 09:26 AM
बहुत खूब
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Satvinder Singh
07-Aug-2022 08:39 AM
और इस तरह प्रथ्वी पर सब कुछ बदल गया
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